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बचपन से लेकर बुढ़ापे तक हम सबको एक दोस्त की जरुरत होती है जो हमारे हर हार जीत में साथ चल सके. जिन्दगी की राह में हमें हर पड़ाव पर कई दोस्त मिलते हैं. उन्हीं दोस्तों और उसकी जरुरत को दर्शाती एक कविता मुझे एक दिन इंटरनेट पर यूंही घूमते-घूमते मिली जो मैंने सोची आप लोगों को भी पढ़ाऊं क्योंकि हो सकता है बिहार के चुनाव और सरकार के घोटालों के बारे में पढ़-पढ़ कर आपका मन ऊब गया हो.
वैसे दोस्ती करना बहुत आसान होता है लेकिन उसे निभाना उतना ही मुश्किल.
ज़मीन, ना सितारे, ना चाँद, ना रात चाहिए,
दिल में मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत में किसी एक प्यारे साथी का हाथों में हाथ चाहिए,
कहूँ ना मैं कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल में उसके, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
मैं तो तैयार हूँ हर तूफान को तैर कर पार करने के लिए,
बस साहिल पर इन्तज़ार करता हुआ एक सच्चा दिलदार चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया के बीच मँझदार में,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
यूँ तो ‘मित्र’ का तमग़ा अपने नाम के साथ लगा कर घूमता हूँ,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिएएक दोस्त चाहिए.
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