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रहीम के दोहे – Rahim ke Dohe

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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rahim1

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग ।

चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग ।।1 ॥


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।

जो दिल खोजा आपना, मुझसा बुरा न कोय ॥2 ॥


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय ॥3 ॥


बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर ॥4 ॥


मीठा सब से बोलिए, फैले सुख चहुँ ओरे!

वाशिकर्ण है मंत्र येही, ताज दे वचन कठोर ॥5 ॥


अब इन पांचों दोहों का मतलब कोई दोस्त बता दे, आज देखते है जागरण जंक्शन के दोस्तों में कुछ ज्ञान है या बस…. राजकमल जी, निखिल जी और आदरणीय खुराना जी से विशेष आग्रह है कि जरा इन दोहों का अर्थ बता दें क्यूंकि ये हिन्दी में तो मुझे कहीं नहीं मिले.

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