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हालांकि किसी की कला को बदलकर उसे अलग रुप देना गलत है लेकिन क्या करें खुराफाती लोग कभी अपनी आदत से बाज नहीं आते और संगीत को मनोरंजक अंदाज में बदलने वाले तो कभी नहीं. कुछ ऐसी ही है यह नई रचना भी. चलिए देखते हैं इस रचना के मस्ती भरे रस को.
ये डिग्री भी ले लो, ये नौकरी भी ले लो 😆
ये डिग्री भी ले लो, ये नौकरी भी ले लो
भले छीन लो मुझसे यू एस की वीजा
मगर मुझको लौटा दो, कालेज की कैन्टीन
वो कम चाय का पानी वो तीखा समोसा
कालेज की कैन्टीन में हम सब थे राजा
वो कड़ी धूप मे अपने घर से निकलना
वो प्रोजेक्ट की खातिर शहर भर भटकना
वो लैक्चर मे दोस्तो की प्रॉक्सी लगाना
वो सर को चिढाना, एयरोप्लेन बनाना
वो सबमिशन की रातों को जगना, जगाना,
वो ओरल्स की कहानी वो लैबों का किस्सा
वो दूसरों के एसाइन्टमेन्ट को अपना बनाना
वो सेमिनार के दिन पैरो का छटपटाना
वो वर्कशाप मे दिन रात पसीना बहाना
वो एक्जाम के दिन का बैचेन माहौल
पर वो माँ का विश्वास टीचर का भरोसा
कालेज की वो लम्बी सी रातें.
वो दोस्तों से ठेले से प्यारी सी बातें
वो गैदरिंग के दिन का लड़ना झगड़ना
वो लड़कियों का यूँ ही हमेशा अकड़ना,
भुलाए नही भूल सकता है कोई
जीवन का अटूट हिस्सा
वो कालेज की यादें वो कालेज के दिन
कोई तो लौटा दे मेरे कालेज के दिन.
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