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जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि इस बार हम जम के होली खेलेंगे तो हमने खेला और इतना खेला कि देखने वाले देखते ही रह गए. रंग तो ऐसा लगाया और लगवाया कि अभी तक छूटने का नाम नहीं ले रहा है. लेकिन हां, पिछले दो साल की सारी कसर होली वाले दिन निकाल ही दी. पर होली की मस्ती में जब हम डूबे हुए थे तो कुछ लोगों को देखकर लगा कि क्या वह इस संसार से अलग हैं.
कुछ लोगों ने होली के दिन सुबह से ही चढ़ा रखी थी, पूछने पर पता चला कि महाशय पूरे साल नहीं पीते पर होली के दिन वह पीना रोकते नहीं. जानकर बड़ा अजीब लगा की एक इंसान जो पूरे साल तो शराफत का चोला ओढ़ कर रखता है, वह होली के दिन इतनी शराब पी लेता है कि उसका चलना भी मुश्किल हो जाता है. और हां, इसके पीछे उसका तर्क था कि होली का दिन साल में एक बार ही आता है और वह इसीलिए इस एक दिन को दिल से सेलीब्रेट करता है.
अब एक बात बताएं क्या शराब पीने के बाद त्यौहार का मजा आता है, पता नहीं लोगों की सोच को क्या हो गया है.
पर हां, हमने होली को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया. पानी बर्बाद ना करने का संकल्प तो हमने किया था पर दूसरों ने हमें खूब नहलाया. और हां, इस होली पर तो हमने सुबह रंगों से लोगों के चेहरों पर चित्रकारी की और जब इससे भी मन नहीं भरा तो शाम को गुलाल लगाने के बहाने चित्रकारी जारी रखी.
काश कि होली दिल्ली में भी दो-चार दिन चलती तो दिल की सारी कसर ही उतार देते. वैसे एक दिन की होली ने ही इतना थका दिया था कि दूसरे दिन कुछ करने का मन ही नहीं था. हमारा होली कॉंटेस्ट के लिए संघर्ष आगे भी जारी रहेगा…!
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