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पापा के दोस्त : एक कहानी अजीब सी

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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काफी दिनों से सब बहुत ठीक ठाक और हल्का फुल्का चल रहा था पर कल शाम कुछ अजीब सा हुआ. मेरे मोहल्ले में शर्मा अंकल के घर कुछ दिनों से हलचल बहुत कम हो गई थी. शर्मा अंकल मेरे पापा के दोस्त है. बीएसएफ के रिटायड सेवक है पर आज भी उनमें स्फूर्ति और जोश है तभी तो हर रोज सुबह-सुबह दौड़ लगाने जाते हैं.


image[2]पर कुछ दिनों से उनसे सुबह सुबह मुलाकात नहीं हो पा रही थी. उनके घर में भी अजीब सा माहौल था. इसी उधेड़बुन में था कि मेरा दोस्त समीर आया और उसने बताया कि मेरे पापा के दोस्त शर्मा अकंल के बेटे ने उनके साथ धोखा करके सारी जायदाद अपने नाम करवा ली है और अब मेरे पापा के दोस्त यानि शर्मा अकंल की बहु  उन्हें हर दिन हर बात पर कलह का मुद्दा चेढ़ती रहती है.


मेरे पापा के दोस्त शर्मा अकंल वैसे हैं तो बहुत ही शांत लेकिन कई मामलों में उनका पारा भी दिल्ली की गर्मी की तरह बढ़ जाता है. पर उनका एक ही बेटा है और उसके लिए वह सब करना चाहते थे उसे अच्छी पढ़ाई भी मुहैया कराई, परवरिश में कोई कमी नहीं रखी. लेकिन जब पेड़ पर फल लग गए तब वह उस फल का आनंद नहीं ले पा रहे है.


अब इसे कलयुग की माया कहें या नए जमाने के बच्चों की दिमाग की खिचड़ी जो अपनी नई नवेली दुल्हन के लिए उस मां बाप को छोड़ने को सहर्ष तैयार हो जाते है जिन्होंने उसे बरसों से प्यार के पालने में पाला हो.


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