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कुछ हल्का जरा हटके लिखने की चाहत में आज मन किया जागरण जंक्शन के साप्ताहिक फोरम पर ही कुछ लिखा जाए. वैसे भी जब से इस मंच पर फोरम नाम का विषय-देऊ सेक्शन शुरु हुआ है तब से टॉपिक ना होने का बहाना बनाना अच्छा नहीं लगता.
अब आते हैं मुद्दे पर महिला सशक्तिकरण. आज देश के चार बड़े राज्यों की कमान महिला मुख्यमंत्रियों के हाथ में हैं, देश की राष्ट्रपति होने का गौरव भी एक महिला को ही हासिल है और तो और भारत के प्रधानमंत्री पद की डोर (अदृश्य रुप से) भी एक महिला के ही हाथ में है. प्रतिभा पाटिल, सोनिया गांधी, शीला दीक्षित, मायावती, जैसी नेताएं देश में बढ़ती महिलासशक्तिकरण की पहचान बनकर उभरी हैं.
देश का सिनेमा जगत हमें हमेशा याद दिलाता रहता है कि आज की नारी को अबला मानने की भूल कतई ना करें.
लेकिन भारत में जो होता है वह दिखता नहीं और जो होता है वह दिखता है. अगर एक बात पर गौर करें तो जिन राज्यों की मुख्यमंत्री खुद महिला हैं वहां महिलाओं पर शोषण की खबरें सबसे ज्यादा आ रही हैं. दिल्ली और यूपी में महिलाओं खुद को दिन के उजाले में भी असहाय और असुरक्षित महसूस करती हैं. हाल के सालों में दिल्ली में गैग रेप, बलात्कार के दर्जनों केस आएं हैं जिनमें से अधिकतर तो पॉश कॉलोनियों में हुआ है. और कमोबेश पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की हालात भी एक समान है.
हां, पर यहा यह कहनेवाले भी कम नहीं है जो लड़कियों के कम कपड़ों की इसकी वजह मानते हैं. कुछ बुद्धिजीवियों की नजर में मॉडर्न फैशन को अपनाना भी कुकर्मियों को दावत देने की समान है. लेकिन यह सब बातें सिर्फ अवधारणा मात्र मानी जा सकती है. जो लोग इस तरह की बातें करते हैं उनसे खुद पूछ कर देख लो कि क्या आपको लड़की साड़ी में पसंद है या वेस्टर्न कपडों में.
लेकिन कुछ गलती लड़कियों की तरफ से भी है. अगर आप देखें तो आज हर पार्क और लवर्स गार्डन में आपको लड़कियां गुलछरे उड़ाती हुई दिखेंगी और वह कहती हैं हम मॉर्डन हैं. उनके मुताबिक वह मॉर्डन हैं और अपनी संस्कृति को तकिए के नीचे घर में छोड़ कर आतीं है. आज दिल्ली के बुद्धा पार्क, लोधी गार्डन और इंद्रप्रस्थ जैसे गार्डनों में लोग अपने परिवार के साथ जाना पसंद नहीं करते क्यूंकि यहां आजकल के युवा अपनी तथाकथित आजादी का अश्लील जश्न मनाते हैं.
भारत में एक कहावत है कि “कभी ताली एक हाथ से नहीं बजती”. हमको भी समझना होगा महिला सशक्तिकरण का सपना तब तक हकीकत की धरातल पर नहीं आ सकता जब तक समाज पूरी तरह इस तरफ जागरुक नहीं होता और साथ ही महिलाओं को भी समझना होगा कि आजादी के बाद मतलब यह नहीं है अश्लील हो जाएं. एक मर्यादा में रहकर महिलाओं को भी आगे बढ़ना होगा और अपने हक का सही इस्तेमाल करना होगा.
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