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आज अन्ना हजारे का अनशन का दसवां दिन है. अन्ना हजारे की हालत अब दिन ब दिन खराब होती जा रही है. 70 पार की उम्र में एक आदमी का दस दिन तक भूखे रहना और वह भी अपने लिए नही बल्कि अपने देश के लिए बहुत ही आश्चर्यजनक बात है. अन्ना के अनशन ने लगभग पूरे देश को एकजुट कर दिया है. आज से पहले शायद आपने सिर्फ गांधी जी और जेपी आंदोलन में ही ऐसा माहौल देखा हो. लेकिनफिर भी इस आंदोलन को देखकर लगता है कि कहीं ना कहीं कुछ छुटा है या गलत हो रहा है. सरकार लोकपाल तो बना रही है पर प्रधानमंत्री को दायरे में नहीं लाना चाहती वहीं अन्ना हजारे अपनी तीन बातें मनवाने के पीछे लगे हैं.
मेरी राय इस लोकपाल बिल पर ज्यादातर अन्ना हजारे से मिलती है लेकिन मैं इस बात का समर्थन नहीं करता कि न्याय-पालिका को लोकपाल के दायरे में रखा जाए. भारत में संसद और न्यायपालिका की जो गरिमा है उसे किसी भी हालत में हम कम नहीं कर सकते. अन्ना हजारे को भी समझना चाहिए कि अगर सरकार उनकी सभी शर्ते मान रही है तो थोड़ा बहुत उन्हें भी झुकना चाहिए. आज देश के सामने भ्रष्टाचार बहुत बड़ा संकट हैं. ए राजा, कलमाड़ी और ना जानें कितने ही नेताओं ने हमें नौंच-नौंच कर लुटा है.
लेकिन मान लीजिए अगर भ्रष्टाचार पूरी तरह खत्म हो जाए तो क्या हम जी पाएंगे. आज जो काम सही रास्ते से पांच सौ रुपए में होता है वहीं भ्रष्टाचार से करवाओ को कई बार कम पैसे और समय में हो जाता है. अभी हमारे शर्मा जी की ही बात ले लों. बेचारे की पिछले पांच साल से राशन कार्ड नहीं बन रहा था. बढ़ती महंगाई में बाहर से राशन खरीदना उन्हें बहुत महंगा पड़ रहा था. फिर एक दिन राशन दफ्तर में उन्होंने हजार रुपए दिए और एक महीने में उनका राशन कार्ड बनकर आ गया. आज वह बहुत खुश हैं. लेकिन फिर भी कहते हैं मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे का समर्थन करने रामलीला मैदान जा रहा हूं. इतने सालों से महंगा राशन खा रहे थे उसकी जगह सिर्फ हजार रुपए देकर उन्हें आने वाले कई सालों तक जो सस्ता राशन उसे वह पलभर में भूल गए.
अब आते हैं मुद्दे पर कि अन्ना और गांधी के अनशन में अंतर क्या है? महात्मा गांधी के लिए अनशन का अर्थ धर्म से जुड़ा हुआ था. इसका लक्ष्य हुआ करता था शरीर और आत्मा की शुद्धि. अपनी आवाज़ को लोगों तक पहुंचाते हुए उन्होंने कहा भी है कि उपवास या अनशन कभी भी गुस्से में नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि गुस्सा एक प्रकार का पागलपन है. महात्मा गांधी का कहना था कि अनशन का अर्थ है बिना कुछ कहे अपनी बात लोगों तक पहुंचाना . गांधी के अनशन का मकसद था बिटिशर्स को चेताना . महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने भी बापू और अन्ना के अनशन में फर्क माना है . बापू के अनशन का ध्येय अपने दुश्मनों को दोस्त बनाने का रहा और अन्ना का अनशन का ध्येय है दुश्मनों का बहिष्कार . हां अन्ना और बापू का ध्येय एक इसलिए है क्योंकि दोनों ही अहिंसा के मार्ग पर चले.
इसमें कोई संदेह नहीं कि हम पूरी तरह से भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं और अब हमें भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए. अन्ना जिन्हें आज दूसरा गांधी कहा जा रहा है उन्हें के 15 दिनों के अनशन की अनुमति सरकार द्वारा मिल गयी है. लेकिन क्या ऐसा होना चाहिए. साथ ही अन्ना के अनशन में हमें एक अलग सा मतलबी और हठी रुप दिख रहा है जो झुकने को बिलकुल तैयार नहीं. अन्ना के अनशन में “मैं” का भाव भी है.
अन्ना हजारे का जीवन देश के अमूल्य हैं. उन्हें अब हट त्याग कर अपना अनशन खत्म कर देना चाहिए.
साभार: http://onlymyhealth.com/
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