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क़बीर के दोहे अर्थ सहित : Kabir ke dohe

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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Kabir ke dohe with meaning

संत शिरोमणि कबीरदास ने अपने दोहों के माध्यम से जनता में अपनी आवाज पहुंचाने के बेहतरीन कोशिश की. संत कबीर के दोहे लोकभाषा में होते थे और इन्हें समझना बेहद आसान होता था. कबीर के दोहे में जो मर्म वह किसी की भी जिंदगी पल में बना सकती है.


Kabir ke dohe

मुख से नाम रटा करैं, निस दिन साधुन संग
कहु धौं कौन कुफेर तें, नाहीं लागत रंग
साधुओं के साथ नियमित संगत करने और रात दिन भगवान का नाम जाप करते हुए भी उसका रंग इसलिये नहीं चढ़ता क्योंकि आदमी अपने अंदर के विकारों से मुक्त नहीं हो पाता।


Kabir ke dohe

सौं बरसां भक्ति करै, एक दिन पूजै आन
सौ अपराधी आतमा, पड़ै चैरासी खान

कई बरस तक भगवान के किसी स्वरूप की भक्ति करते हुए किसी दिन दुविधा में पड़कर उसके ही किसी अन्य स्वरूप में आराधना करना भी ठीक नहीं है। इससे पूर्व की भक्ति के पुण्य का नाश होता है और आत्मा अपराधी होकर चैरासी के चक्कर में पड़ जाती है।


Kabir ke dohe

साधू भूखा भाव का, धन का भूखानाहिं
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं

कबीर दास जीं कहते हैं कि संतजन तो भाव के भूखे होते हैं, और धन का लोभ उनको नहीं होता । जो धन का भूखा बनकर घूमता है वह तो साधू हो ही नहीं सकता।


Kabir ke dohe
जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय

संत शिरोमणि कबीरदास कहते हैं कि जैसा भोजन करोगे, वैसा ही मन का निर्माण होगा और जैसा जल पियोगे वैसी ही वाणी होगी अर्थात शुद्ध-सात्विक आहार तथा पवित्र जल से मन और वाणी पवित्र होते हैं इसी प्रकार जो जैसी संगति करता है वैसा ही बन जाता है।


Kabir ke dohe

दुख लेने जावै नहीं, आवै आचा बूच।
सुख का पहरा होयगा, दुख करेगा कूच।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि दुःख लेने कोई नहीं जाता। आदमी को दुखी देखकर लोग भाग जाते हैं। किन्तु जब सुख का पहरा होता होता है तो सभी पास आ जाते हैं।


Kabir ke dohe
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर अपने मन में शीतलता हो तो इस संसार में कोई बैरी नहीं प्रतीत होता। अगर आदमी अपना अहंकार छोड़ दे तो उस पर हर कोई दया करने को तैयार हो जाता है।


Kabir ke dohe

कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कटु वचन बहुत बुरे होते हैं और उनकी वजह से पूरा बदन जलने लगता है। जबकि मधुर वचन शीतल जल की तरह हैं और जब बोले जाते हैं तो ऐसा लगता है कि अमृत बरस रहा है।


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