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कबीर के दोहे अर्थ सहित: Kabir ke Dohe in Hindi With meaning
चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए
वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा खवाय॥
अर्थात चिंता ऐसी डाकिनी है, जो कलेजे को भी काट कर खा जाती है। इसका इलाज वैद्य नहीं कर सकता। वह कितनी दवा लगाएगा। वे कहते हैं कि मन के चिंताग्रस्त होने की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है, जैसे समुद्र के भीतर आग लगी हो। इसमें से न धुआं निकलती है और न वह किसी को दिखाई देती है। इस आग को वही पहचान सकता है, जो खुद इस से हो कर गुजरा हो।
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New RAHIM KE DOHE WITH HINDI MEANING
कबीर के दोहे अर्थ सहित: Kabir ke Dohe in Hindi With meaning
आगि जो लगी समुद्र में, धुआं न प्रगट होए।
की जाने जो जरि मुवा, जाकी लाई होय।।
फिर इससे बचने का उपाय क्या है? मन को चिंता रहित कैसे किया जाए? कबीर कहते हैं, सुमिरन करो यानी ईश्वर के बारे में सोचो और अपने बारे में सोचना छोड़ दो। या खुद नहीं कर सकते तो उसे गुरु के जिम्मे छोड़ दो। तुम्हारे हित-अहित की चिंता गुरु कर लेंगे। तुम बस चिंता मुक्त हो कर ईश्वर का स्मरण करो। और जब तुम ऐसा करोगे, तो तुरत महसूस करोगे कि सारे कष्ट दूर हो गए हैं।
कबीर के दोहे अर्थ सहित: Kabir ke Dohe in Hindi With meaning
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कबीर के दोहे अर्थ सहित: Kabir ke Dohe in Hindi With meaning
लेकिन कबीर प्रत्येक व्यक्ति को स्वावलंबी बनने का उपदेश देते हैं। कहते हैं :
करु बहियां बल आपनी, छोड़ बिरानी आस।
जाके आंगन नदिया बहै, सो कस मरै पियास।।
अर्थात मनुष्य को अपने आप ही मुक्ति के रास्ते पर चलना चाहिए। कर्म कांड और पुरोहितों के चक्कर में न पड़ो। तुम्हारे मन के आंगन में ही आनंद की नदी बह रही है, तुम प्यास से क्यों मर रहे हो? इसलिए कि कोई पंडित आ कर बताए कि यहां से जल पी कर प्यास बुझा लो। इसकी जरूरत नहीं है। तुम कोशिश करो तो खुद ही इस नदी को पहचान लोगे।
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कबीर के दोहे अर्थ सहित: Kabir ke Dohe in Hindi With meaning
कबीर एक उपाय और बताते हैं, कहते हैं कि सुखी और स्वस्थ रहना है तो अतियों से बचो। किसी चीज की अधिकता ठीक नहीं होती। इसीलिए कहते हैं :
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
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कबीर के दोहे अर्थ सहित: Kabir ke Dohe in Hindi With meaning
इस चंचल मन के स्वभाव की विवेचना करते हुए कबीर कहते हैं, यह मन लोभी और मूर्ख हैै। यह तो अपना ही हित-अहित नहीं समझ पाता। इसलिए इस मन को विचार रूपी अंकुश से वश में रखो, ताकि यह विष की बेल में लिपट जाने के बदले अमृत फल को खाना सीखे।
कबिरा यह मन लालची, समझै नहीं गंवार।
भजन करन को आलसी, खाने को तैयार।।
कबिरा मन ही गयंद है, आंकुष दे दे राखु ।
विष की बेली परिहरी, अमरित का फल चाखु ।।
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