थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
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कैसा बादल है जिसका कोइ साया भी नहीं
बेरुखी इससे बड़ी और भला क्या होगी
एक मुद्दत से हमें उसने सताया भी नहीं
रोज आते हैं दरे-ए-दिल पे वो दस्तक देने
आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं
सुन लिया कैसे खुदा जाने जमाने भर ने
वो फ़साना जो हमने कभी सुनाया भी नहीं
तुम तो शायर हो ‘कातिल‘ और वो एक आम सा शख्स
उस ने चाहा भी नहीं तुझे और जताया भी नहीं…
कातिल सैफाई की शायरी
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