Menu
blogid : 355 postid : 1020

Women’s Day Kavita: मां का आंचल

थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
थोडा हल्का - जरा हटके (हास्य वयंग्य )
  • 247 Posts
  • 1192 Comments

आज विश्व महिला दिवस के मौके पर मैं अपनी जिंदगी की उस महिला के बारें में सबको बताना चाहता हूं जिसे मैं भगवान से भी पहले पूजता हूं. यह महिला हैं मेरी मां. मां के नाम ही एक कविता आज आपके साथ शेयर कर रहा हूं.


मुनव्वर राणा की कुछ पंक्तियाँ माँ को समर्पित हैं:

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

किसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई

इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है
माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती

ये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती है

खाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव से
बासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रही

बरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में है

अंत में:
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक


Tag: Kavita, Hindi Kavita, Hindi Kavita for Mother, Mother’s Day Poem in Hindi, Mother’s Day Kids Poem, Kid’s Poem, कविता, मां

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh